उत्तर प्रदेश एक बार फिर अवैध धर्मांतरण के गंभीर मामले को लेकर सुर्खियों में है। बलरामपुर और आगरा के बाद अब अलीगढ़ में अवैध धर्म परिवर्तन का एक बड़ा नेटवर्क सामने आया है, जिसने पूरे प्रशासन को चौंका दिया है। पुलिस और खुफिया एजेंसियों की प्रारंभिक जांच में यह सामने आया है कि करीब 97 महिलाएं इस नेटवर्क का शिकार बन चुकी हैं, जो अब लापता हैं।
मामले का खुलासा कैसे हुआ?
इस पूरे मामले की शुरुआत उस वक्त हुई जब आगरा से उमर गौतम नाम के व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई, जो पहले से ही अवैध धर्मांतरण के कई मामलों में संलिप्त पाया गया था। पूछताछ के दौरान खुलासा हुआ कि उमर गौतम ने अलीगढ़ में भी एक मजबूत नेटवर्क खड़ा कर रखा था।
मार्च 2025 में अलीगढ़ के सदर थाने में दो बहनों (33 और 18 वर्ष) की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। जब पुलिस ने इस केस की गहराई से जांच की, तो सोशल मीडिया पर एक बहन की तस्वीर सामने आई जिसमें वह एके-47 जैसे हथियार के साथ नजर आ रही थी। इस फोटो ने जांच को एक नया मोड़ दे दिया और पुलिस को अंदेशा हुआ कि यह सिर्फ गुमशुदगी का मामला नहीं, बल्कि एक संगठित अपराध है।
सोशल मीडिया और डार्क वेब के ज़रिए जाल बिछाया गया
जांच में यह सामने आया कि यह गिरोह सोशल मीडिया, डार्क वेब और मोबाइल एप्स की मदद से युवतियों को निशाना बनाता था। पहले प्रेम जाल में फंसाया जाता, फिर उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित कर जबरन धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जाता।
गैंग की कार्यप्रणाली इतनी गुप्त और शातिर थी कि पुलिस की विभिन्न टीमें भी एक-दूसरे की जांच से अनजान थीं। यह नेटवर्क केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके तार कोलकाता, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और यहां तक कि विदेशों तक फैले हुए थे।
विदेशी फंडिंग और आतंकी कनेक्शन
पुलिस महानिदेशक राजीव कृष्ण ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि इस नेटवर्क को कनाडा, दुबई, लंदन और अमेरिका जैसे देशों से भारी मात्रा में फंडिंग मिली है। यह पैसा हवाला के ज़रिए भारत भेजा जाता था और नेटवर्क के संचालन में उपयोग होता था।
जांच में ऐसे संकेत भी मिले हैं कि गैंग के संपर्क पीएफआई, सिमी और लश्कर-ए-तैयबा जैसे प्रतिबंधित संगठनों से थे। इस नेटवर्क की कार्यप्रणाली आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों से मिलती-जुलती बताई जा रही है।
मुख्य आरोपी और उनकी भूमिकाएं
इस मामले में अब तक जिन लोगों की पहचान हुई है, उनमें शामिल हैं:
- आयशा (पूर्व नाम: एसबी कृष्णा, ओडिशा) – विदेशों से फंडिंग जुटाने और पैसे बांटने की जिम्मेदार।
- अली हसन उर्फ शेखर राय (कोलकाता) – नेटवर्किंग और प्रभावशाली लोगों से संपर्क का कार्य।
- मोहम्मद अली (जयपुर) – युवतियों की तलाश और परिवहन की भूमिका।
इन सभी आरोपियों को अलग-अलग छह राज्यों से गिरफ्तार किया गया है और इन पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ है।
97 महिलाओं का रहस्य
अब तक की जांच में पुलिस को पता चला है कि अलीगढ़ और उसके आसपास के इलाकों से 97 महिलाएं लापता हैं। इन महिलाओं में से अधिकतर को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया, और कुछ को कथित तौर पर निकाह के लिए कोलकाता भेजा गया।
कुछ मामलों में यौन शोषण और घरेलू हिंसा की भी शिकायतें मिली हैं। इन सभी मामलों की जांच खुफिया एजेंसियां और महिला सुरक्षा सेल कर रही हैं। पुलिस का मानना है कि यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है।
“मिशन अस्मिता” और मुख्यमंत्री की सख्ती
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस तरह के मामलों को रोकने के लिए “मिशन अस्मिता” की शुरुआत की है। इस अभियान के तहत आगरा पुलिस की 7 विशेष टीमों ने देश के कई हिस्सों में छापेमारी की और 10 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया।
इन सभी पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 87, 111(3), 111(4) और उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 के तहत केस दर्ज किया गया है।
निष्कर्ष: महिला सुरक्षा और धर्मांतरण कानून की परीक्षा
अलीगढ़ में सामने आया यह मामला केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि महिला सुरक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के तीन बड़े पहलुओं को एक साथ छूता है। जिस तरह से युवतियों को निशाना बनाया गया और उन्हें जबरन धर्म बदलवाया गया, वह बेहद गंभीर और निंदनीय है।
इस मामले ने यह साफ कर दिया है कि सोशल मीडिया और डार्क वेब का गलत इस्तेमाल कर संगठित गिरोह किस तरह समाज की बुनियाद को हिला सकते हैं। अब देखने वाली बात होगी कि पुलिस और खुफिया एजेंसियां इस नेटवर्क की पूरी जड़ तक कैसे पहुंचती हैं और पीड़ित महिलाओं को न्याय कैसे दिलवाया जाता है।
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