Kargil Vijay Diwas 2025: हर साल 26 जुलाई को भारत गर्व और शौर्य के उस पल को याद करता है, जब हमारी सेना ने कारगिल युद्ध में दुश्मन को धूल चटा दी थी। लेकिन इस जंग की शुरुआत एक साधारण चरवाहे से हुई थी। लद्दाख के ताशी नामग्याल ने 3 मई 1999 को वंजू टॉप के पास हथियारबंद घुसपैठियों को देखा। ये कोई आम लोग नहीं थे, बल्कि प्रशिक्षित सैनिक थे जिनके इरादे भारत की सरहद में घुसकर कब्जा जमाने के थे। ताशी की सूझबूझ और हिम्मत ने समय रहते भारतीय सेना को सतर्क कर दिया, जिससे देश की सरहदें सुरक्षित रह सकीं।
कैप्टन सौरभ कालिया की टीम और पहला मुकाबला: सच्चाई सामने आने लगी
ताशी की सूचना पर तुरंत कार्रवाई करते हुए सेना ने 5 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में एक टुकड़ी को रवाना किया। इस टीम का उद्देश्य था उन घुसपैठियों की असलियत का पता लगाना। जब टीम ने दूर से ही उन्हें देखा, तो साफ हो गया कि वे सामान्य आतंकवादी नहीं, बल्कि आधुनिक हथियारों से लैस पाकिस्तानी सैनिक हैं। कैप्टन और उनके साथी काफी देर तक लौटे नहीं, तब सेना को शक हुआ और दूसरी टुकड़ियों को भेजा गया। मुठभेड़ के दौरान यह साफ हो गया कि भारत के सामने एक छद्म युद्ध छेड़ा जा चुका है, जिसे पाकिस्तान ने गुपचुप तरीके से अंजाम दिया था।
सामने आया पाकिस्तान का झूठा और कायराना चेहरा
मुठभेड़ों के दौरान जो दस्तावेज और हथियार बरामद हुए, उन्होंने पाकिस्तान की सच्चाई उजागर कर दी। यह कोई आतंकवादी हमला नहीं था, बल्कि पाकिस्तानी सेना की सोची-समझी साजिश थी। घुसपैठिए वास्तव में पाक सेना और अर्धसैनिक बलों के जवान थे, जो बर्फबारी के मौसम में भारतीय चोटियों पर कब्जा कर चुके थे। भारतीय सेना के लिए यह जानकारी बेहद गंभीर थी और दिल्ली में बैठे आला अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरा गईं। ऐसे समय में तेज और सटीक निर्णय लेकर भारतीय वायुसेना और थलसेना ने युद्ध की रणनीति तैयार की।
ऑपरेशन विजय और ऑपरेशन सफेद सागर की ऐतिहासिक शुरुआत
26 मई 1999 को भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ और ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ के तहत निर्णायक जवाब देने का फैसला किया। जहां वायुसेना ने दुश्मन के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू किए, वहीं जमीनी मोर्चे पर सेना ने एक-एक चोटी को दुश्मन से वापस लेने की योजना बनाई। खासकर तोलोलिंग, काकसर और मुश्कोह घाटी जैसे रणनीतिक इलाकों को दुश्मनों से मुक्त कराना बेहद जरूरी था। इन चोटियों पर कब्जा होने से पाकिस्तान को नेशनल हाईवे 1A पर नियंत्रण मिल सकता था, जिससे भारत की सप्लाई लाइन खतरे में पड़ जाती। लेकिन भारतीय सेना ने साहस, रणनीति और देशभक्ति से इस योजना को नाकाम किया।
तोलोलिंग से टाइगर हिल तक: एक-एक चोटी पर तिरंगा फहराया
13 जून 1999 को भारतीय सेना ने तोलोलिंग और प्वाइंट 4590 पर कब्जा कर लिया। इसके बाद मिशन ने गति पकड़ी और सेना ने एक-एक कर कई अहम चोटियों को मुक्त कराया। इसमें प्वाइंट 5410, ब्लैक रॉक, थ्री पिंपल, प्वाइंट 5000, प्वाइंट 5287, टाइगर हिल, प्वाइंट 4875 और जूलू सुपर कॉम्प्लेक्स जैसी प्रमुख ऊंचाइयां शामिल थीं। हर चोटी पर तिरंगा फहराने के पीछे भारतीय जवानों की बहादुरी, निडरता और निस्वार्थ देशभक्ति थी। इस पूरे ऑपरेशन के दौरान हजारों सैनिकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना देश की सीमा की रक्षा की।
26 जुलाई 1999: जब भारत ने दुनिया को दिखाई अपनी सैन्य शक्ति
26 जुलाई 1999 को आधिकारिक रूप से कारगिल युद्ध का अंत हुआ और भारत ने पूरे कारगिल क्षेत्र से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ दिया। इस दिन को ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध ने दुनिया को दिखा दिया कि भारत ना केवल शांति में विश्वास रखता है, बल्कि उसकी रक्षा करने के लिए बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटता। इस विजय ने पाकिस्तान की साजिशों को हमेशा के लिए बेनकाब कर दिया और भारतीय सेना की रणनीतिक क्षमता और अदम्य साहस की मिसाल बन गई।
निष्कर्ष: कारगिल विजय दिवस सिर्फ एक दिन नहीं, एक जज़्बा है
कारगिल विजय दिवस सिर्फ इतिहास की एक तारीख नहीं है, बल्कि हर भारतीय के गर्व, सम्मान और शौर्य का प्रतीक है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि चाहे दुश्मन कितना भी चालाक क्यों न हो, हमारी सेना हर परिस्थिति में देश की रक्षा करने में सक्षम है। ताशी नामग्याल से लेकर टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने वाले सैनिकों तक – हर व्यक्ति एक प्रेरणा है। इस दिवस पर हमें सिर्फ सलामी नहीं देनी है, बल्कि यह संकल्प लेना है कि देश की एकता और अखंडता के लिए हम हमेशा सजग रहेंगे।
🇮🇳 कारगिल हीरो को सलाम करें!
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