देश में भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की मुहिम के बीच एक आरटीओ कर्मचारी के पास से मिली भारी संपत्ति ने हर किसी को चौंका दिया है। मध्य प्रदेश के रीवा जिले में EOW (आर्थिक अपराध शाखा) की छापेमारी के दौरान, एक RTO विभाग के क्लर्क के पास से ऐसी दौलत मिली है जिसे देखकर जांच एजेंसियां भी हैरान रह गईं।
44 प्लॉट, 1 किलो सोना और 1 करोड़ बैंक बैलेंस
इस सरकारी कर्मचारी के पास से EOW को जो दस्तावेज मिले हैं, उनके अनुसार उसके नाम पर रीवा, सतना, जबलपुर और उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुल 44 प्लॉट हैं। इसके अलावा छापेमारी में लगभग 1 किलो सोना और 2 किलो चांदी भी मिली है। कर्मचारी के बैंक खातों में 1 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा पाई गई है, जो उसकी आय के ज्ञात स्रोतों से मेल नहीं खाती।
क्या-क्या मिला छापेमारी में?
- 44 जमीनों की रजिस्ट्री और दस्तावेज
- करीब 1 किलो सोने के गहने
- 2 किलो से अधिक चांदी
- लग्जरी कारें और बाइक
- 1 करोड़ से अधिक का बैंक बैलेंस
- कीमती मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स
आलीशान घर और किरायेदारी से भी मोटी कमाई
जांच में यह भी सामने आया है कि आरोपी क्लर्क का घर बेहद आलीशान और अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है। वह कई संपत्तियों से हर महीने लाखों रुपये किराए के रूप में कमाता है। घर से बरामद दस्तावेजों से पता चला कि उसने अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर भी संपत्तियां खरीद रखी हैं।
आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज
EOW ने इस मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आय से अधिक संपत्ति रखने का केस दर्ज कर लिया है। विभाग का कहना है कि आगे की जांच में और भी चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं। आरोपी से पूछताछ जारी है और उसकी संपत्ति के सभी पहलुओं की जांच की जा रही है।
सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता की मांग फिर हुई तेज
इस घटना के सामने आने के बाद सरकारी विभागों में पारदर्शिता और ईमानदारी को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। आम जनता सवाल उठा रही है कि एक साधारण क्लर्क के पास इतनी संपत्ति कैसे आई? क्या यह अकेला मामला है या फिर ऐसी स्थिति अन्य विभागों में भी है?
निष्कर्ष: ईमानदारी पर सवाल, जांच की ज़रूरत
इस तरह की घटनाएं केवल भ्रष्टाचार के गहरे जड़ तक फैले होने को दर्शाती हैं। सरकार और संबंधित एजेंसियों को चाहिए कि वे सभी विभागों में नियमित और निष्पक्ष जांच करें ताकि ईमानदार कर्मचारियों को प्रोत्साहन मिले और भ्रष्ट अफसरों पर शिकंजा कसा जा सके।
डिस्क्लेमर: यह लेख सार्वजनिक जानकारी और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारियां किसी भी व्यक्ति को दोषी या निर्दोष ठहराने का दावा नहीं करतीं। इस विषय में अंतिम निर्णय संबंधित न्यायिक प्रक्रियाओं के बाद ही लिया जा सकता है।